Wednesday 13 March 2019

शहरी नक्सलवाद

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शहरी नक्सलवाद (बौद्धिक आतंकवाद)
1.बौद्धिक आतंकवाद (Intellectual terrorism) का अर्थ क्या होता है। जो हमारी मानसिकता है, जो हमारा विचार है, जो हमारी संगत है, उसे बदला जाए इसे ही हम बौद्धिक आतंकवाद कहते हैं। जैसे धर्म परिवर्तन होता है ऐसे ही विचार परिवर्तन कैसे होता है वह बौद्धिक आतंकवाद होता है।
2.42वां संविधानिक संशोधन कर 1976 में इंदिरा गांधी ने तीन शब्द संविधान में जोड़ें समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और अखंडता. उस समय आपातकाल लगा था। इंदिरा गांधी ने जबरन इन तीन शब्दों को जोड़ा था क्योंकि उस समय इंदिरा गांधी की मनमानी चलती थी। तो ऐसी क्या आवश्यकता पड़ गई कि सोशलिस्ट(समाजवाद) शब्द हमारे संविधान में जोड़ना पड़ा। उस समय भारत में रूस का इतना प्रभुत्व बढ़ गया था, कि हमें अपने संविधान में संशोधन करके समाजवाद का शब्द जोड़ना पड़ा।
3.उस समय रूस, भारत में बहुत अंदर तक घुस चुका था। उस समय हर शहर में रूसी किताबों के बुक फेयर लगते थे सारी किताबें रशियन में आने लगी। उस समय रूस का समाजवाद हमारी संस्कृति पर इतना हावी हो चुका था।
4.समाजवाद शब्द कि हमारे संविधान में इसलिए जरूरत नहीं थी क्योंकि हमारी गांव आधारित अर्थव्यवस्था (विलेज इकोनामी) है। समाजवाद के बिना हम कोई काम नहीं करते, गांव बस नहीं सकते,  समाजवाद के बिना। आज भी 21वीं सदी में देखिए पड़ोसी से साबुन, शैंपू आज भी हम मंगवा लेते हैं विश्व में और कहीं भी यह संभव नहीं है। वसुधैव कुटुंब की मान्यता तो हमारे यहां सदियों से है, हम सिर्फ अपने गांव अपने शहर को ही अपना नहीं मानते हम तो विश्व को अपना समाज मानते हैं इसलिए समाजवाद शब्द की हमारे संविधान में आवश्यकता नहीं थी। समाजवाद तो हमारे कण-कण में विद्यमान है। परंतु आज समाजवाद संविधान में है इसलिए आज इसका गलत फायदा उठाया जा रहा है समाज की दूसरी शब्दावली तैयार की जा रही है।
5. धर्मनिरपेक्ष शब्द की भी भारत में कोई आवश्यकता नहीं थी। जैसे दूध में नींबू मिल जाने पर दूध, दूध नहीं रहता। वैसे ही धर्मनिरपेक्षता भारत में टिक ही नहीं सकती। धर्मनिरपेक्ष शब्द यूरोप में 2000 वर्ष पहले शुरू हुआ था। क्योंकि जो धर्म था, वह राज्य (स्टेट) के अंतर्गत रहता था। उस समय क्रिश्चियनिटी नई-नई शुरू हो रही थी, और वह गांव या राज्य में जाकर कहते थे। जो तुम्हारा धर्म है, इसके अलावा भी आपको यह धर्म मानना पड़ेगा। इसलिए वहां पर दो धर्मों को एक साथ मानने के लिए धर्मनिरपेक्ष राज्य का इस्तेमाल करा गया था।
6.और हमारे यहां इसकी जरूरत ही नहीं थी क्योंकि हमारे यहां पीपल को, बरगद को, पत्थर को किसी भी भगवान को मानने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। पूरी आजादी थी, कि तुम किसी भी भगवान को मानो। इसलिए हमारे यहां धर्मनिरपेक्ष शब्द की कोई आवश्यकता नहीं थी। परंतु आज संविधान में संशोधन होने के बाद धर्मनिरपेक्ष शब्द की आड़ में हम अपने देश का साहित्य नहीं पढ़ा सकते गीता को नहीं पढ़ा सकते, रामायण को नहीं पढ़ा सकते इससे ज्यादा क्या विडंबना होगी।
7.उसके बाद आप देखेंगे कि कैसे नियोजित तरीके से हमारे भारतीय साहित्य को नष्ट और परिवर्तित किया गया। 800 साहित्यों में परिवर्तन किया था, हमारे साहित्यकारों के लेख, कहानी, कविता सबको पश्चिमी कहानीयों में परिवर्तन कर दिया गया ऐसे भारत में जितने भी प्रेस थे, जैसे गीताप्रेंस सब की कमर टूट गई। जो भारत की संस्कृति का नेतृत्व कर रहे थे, उस पर पश्चिमी प्रेंस ने अपना अधिपत्य (टेकओवर) स्थापित कर लिया। वेद, श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, शिवा जी, महाराणा प्रताप ये सब लुप्त हो गए। आज हमारे भारत की विडंबना है कि चेतन भगत की बुक सबसे ज्यादा बिकती है। यह हमारे साहित्य का स्तर रह गया है। दुष्यंत कुमार जैसे लेखक को सिर्फ इसलिए मार दिया गया था कि उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ एक कविता लिख दी थी।
8.भारत में गाय की बात चलती है, बीफ की बात चलती है, बीफ को खाना गर्व समझा जाता है। ऐसा नहीं कि किसी और देश में किसी जानवर पर प्रतिबंध नहीं है। विश्व में अनेक जानवरों पर प्रतिबंध है। क्योंकि वह उनकी अखंडता व उनकी संस्कृति का आज भी हिस्सा है। इसलिए उसको मार कर नहीं खाते।
9.जैसे अमेरिका में घोड़े के मांस पर प्रतिबंध है। वहां घोड़े का मांस इसलिए लोग नहीं खाते क्योंकि वह उनकी संस्कृति का हिस्सा था। उनकी घोड़े में श्रद्धा है, उससे वह अपनी रोजी-रोटी चलाते थे, उस पर यात्राएं करते थे, जीवन यापन का साधन था। उस घोड़ा को इसलिए आज वह मार कर नहीं खाते। इंग्लैंड में बत्तख पर प्रतिबंध है, ऑस्ट्रेलिया में कंगारू पर प्रतिबंध है। अलग-अलग देशों में अलग-अलग जानवरों पर प्रतिबंध है क्योंकि उन जानवरों से उनकी मान्यताएं जुड़ी हुई है।
10.परंतु भारत का दुर्भाग्य है कि इस देश का 70% भौगोलिक भाग गाय व कृषि आधारित है, उस पर निर्भर है। जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती है, फिर भी इस देश में इस पर बहस चल रही है कि यहां के लोगों को गाय का मांस बहुत पसंद है। भारत में आज तमाम मुस्लिम जुलाहों के रूप में गाय की पूजा करते हैं वह उन्हें मां मानते हैं।
11.2014 के बाद ये बीफ बैन करने का वादविवाद चला। इससे पहले इसका ज़िक्र कहां उठता था। यह मुद्दे बनाए जाते हैं। 2014 से पहले कौन कहता था, कि हम बीफ के बिना जिंदा नहीं रह सकते। बरखा दत्ता हर साल प्रश्न उठाती है। कि आज भी भारतीय महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती हैं। वह सही है कि आप मॉडर्न हो गई हैं। आप को महत्व नहीं पता या बताया नहीं गया। बार-बार एक ही बात बोल कर बताना कि आप मॉडर्न है और यह प्रथा गलत है। यह बयान भारत में नई प्रथा शुरू करते हैं। भारत का नैरेटिव ऐसा है कि हावर्ड में पढ़ने वाले घड़ी देखकर समय बताते हैं, और भारत के गांव का आदमी सूरज की रोशनी देखकर टाइम बता देता है।
12.उसके बाद मीडिया की बात करते हैं। मीडिया में क्या-क्या आता है Fm, hodings, movies, News etc..  यह लोग समाज को कथात्मक रूप देते हैं, नैरेटिव तय करते हैं। आप देखेंगे आजादी के बाद या पहले राज कपूर की जितनी भी फिल्में थीं। जो लोग गरीबों पर अत्याचार करते थे जैसे जमीदार हो गए बड़े-बड़े उद्योगपति हो गए। इन सब के खिलाफ हमेशा हीरो खड़ा होता था। हमेशा हीरो गरीबों के साथ खड़ा होता था। यह कुछ भी करते थे, पर देश के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलते थे। उस समय फिल्मों में भी देश हित में खड़े होते थे।
13.देश के खिलाफ खड़ा होना या फिर देशविरोधी सुर कब आये जब ये बौद्धिक आंतकवाद आया। 70 के दशक तक जब अमिताभ बच्चन तक सब सही था। जो हीरो होते थे उघयोगपतियों, जमींदारों के खिलाफ लड़ाई लड़ते थे। धर्मेंद्र हो, राजेश खन्ना, शशि कपूर। ये सभी फिल्मों में गरीबों के साथ खड़े नजर आते थे फिल्मों में भारतीय संस्कृति झलकती थी।
पहले रामानंद सागर की रामायण आती थी व बी.आर चोपड़ा जी का महाभारत जिनके पात्र असली लगते थे पूरा मोहल्ला साथ बैठकर रामायण और महाभारत देखता था, उससे समाज में रहने वाले बच्चे सीखते थे। वह संस्कारों को अपनाने का भरसक प्रयास करते थे परंतु आज नए रामायण, महाभारत टीवी पर आते हैं इसमें पवित्रता कम अश्लीलता ज्यादा नजर आती है।
पिछले सात वर्षों से सिनेमा में आई तेजी से परिवर्तन से बहुत सी समस्याओं को जन्म दिया है और आज वह समस्या हमारे लिए एक चुनौती बन गई हैं और समाज को तोड़ने का कारण बन गई है जैसे लड़कियों से बदसलूकी,बलात्कार, छोटों का बड़ों पर हावी होना। यह नई समस्याओं को इस बदलते सिनेमा ने जन्म दिया है। मैं साधुवाद देता हूं आस्था विश्वास संस्कार चैनल को जो भारत की संस्कृति व मूल्यों को प्रकाशित करते हैं।
14.इन फिल्मों में एक पत्रकार होता था। गरीब सा, टूटी चप्पल, फटा कुर्ता पहने, धूप में साइकिल से चला जाता था। चैन उतरी, फिर चढ़ाई, चला जा रहा है। सत्य की खोज में भारत के मान की रक्षा के लिए, भारत के आम आदमी की जो व्यथा है। उसे बचाने के लिए वह पत्रकार तपती धूप में चलता था।
15.यहां तक कि 90 के दशक में भी जितनी भी फिल्में थीं जैसे-दीवार, उस समय भी देशभक्ति की कितनी फिल्में थीं। इनमें मां बेटे का प्यार, मां बेटे के रिश्ते, परिवार की मर्यादा यहां तक सब ठीक था। इन सब में जो हीरो होता था वह किसी टीचर का बेटा होता था या किसान का बेटा होता था। एक हिंदुस्तान के जन जनार्दन आम आदमी जमीन से जुड़ा हुआ होता था, जो अच्छी हिंदी बोलना जानता था। ऐसे पात्र होते थे। जिसे जनता देख कर कुछ सीखती, थी। इन को अपना आदर्श मानती थी।
16.फिर भारतीय सिनेमा का स्वरूप बदला शाहरुख, आमिर जैसे नए-नए हीरो आये। ( मतलब इन का काल शुरू हुआ) अन्य जब यह लोग आए, तो दो चीजें बदली। हमारी फिल्मों से आम आदमी गायब हो गया। जो आम आदमी था वह NRI हो गया। दूसरा जो पत्रकार था, जो दिन भर तपती धूप में चलता था, वह उस NRI का दोस्त बन गया। और शराबखानों NRI के साथ डांस देखते हुए दिखने लगा।
17.फिर उस समय एक नया शब्द निकल कर आया जिसको हम दलाल कहते हैं। अब वह दलाल क्या करने लगा कि वह दो देशों के बीच में या दो कंपनियों के बीच में विचौलिया बनने लगा और सौदा कराते समय वह अपने पास बहुत पैसा रख लेता था। उस समय दलाल वह बहुत अमीर होते गए।
18.हिंदुस्तान में पिछले 30 वर्षों से इंदिरा गांधी की सरकार आने के बाद हिंदुस्तान में वही लोग रहीस बने जो दलाली का काम करते थे और दलाली पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है, हमें सरकारी दफ्तरों में ये दलाल आज भी मिल जाएंगे।
19.दलाल सबसे पैसे वाले हो गये फिर दलाली थोड़ी सस्ती पड़ने लगी थोड़ी नरम पड़ने लगी। जब बोफोर्स घोटाला हुआ, तब दलाली थी इसके बाद यह extortionist एक्टोरनिस्ट बन गए राजीव गांधी की सरकार के बाद मतलब गठबंधन की सरकार जिसके पास पूर्ण बहुमत नहीं होता था। उनके हाथ में सत्ता रहने लगी।
20.Extortionist वह लोग होते हैं जो किसी को धमका के पैसा वसूलते हैं और इसमें जो सबसे आगे निकले वह मीडिया वाले थे। क्योंकि हिंदुस्तान में उस समय राजीव गांधी की सरकार थी और उस समय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नया-नया भारत में आया था। तो पत्रकारों की रिर्पोटिंग टीवी पर प्रकाशित होने लगी और यह बहुत प्रचलित (हाईलाइट) हो गए। पत्रकार जो होते थे वह समाज का आइना बन गए। सब लोगों के चहेते बन गए।
21.फिर देश में बोफोर्स घोटाला जैसे मुद्दे उभर कर आए और मीडिया वालों ने इसको बहुत कवरेज दी। सबके सामने रखा और यह बात पूरे देश में आम जन तक फैल गई। फिर इसको बंद करने के लिए सामने से पैसे का ऑफर आने लगा कि भाई पैसे लेकर इसे बंद करो धीरे-धीरे उनके मुंह पर पैसे का रंग लग गया।
और आज अमेरिका भी MIG-21 से F-16 की नाकामी को दबाने की भरपूर कोशिश कर रहा है। यदि ऐसा हुआ तो अमेरिका का हथियारों का बाजार ठंडा पड़ जाएगा।
22.आज यह हालात हो गए हैं जिसको आप मीडिया समझते हैं वह मीडिया है नहीं। वह एक वसूली का जरिया बन चुका है। और यह वसूली दो स्तर पर होती है। पहली डायरेक्ट बिजनेस इसमें क्या होता था कि आप मुझे पैसे दो मैं उसे गाली दूंगा। दूसरा क्योंकि मैं चोर हूं तो मैं इस नेरेटिव को ही हटा देता हूं।
23.आज भी जो मीडिया का सामान्य पत्रकार है वह आज भी धूप में चलकर जन-जन की आवाज और जो इस देश की समस्या है। उनको लेकर मीडिया हाउस तक तो जाता है। पर होता क्या है, कि जो मीडिया हाउस को चला रहे हैं। जो पत्रकार अब NRI के साथ बैठने लगे थे। वह पत्रकार उस खबर को जनता को दिखाते ही नहीं है। नेरेटिव इन लोगों ने ही तय कर रखा है।
24.आज शहरों में हमारे बीच रहकर यह शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं जैसे ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट, उदारवादी, धर्मनिरपेक्षता, सिविल सोसायटी, नर्मदा बचाओ आंदोलन, और विभिन्न तरह की NGO के रूप में यह शहरों में रहकर नक्सलवाद फैलाते हैं और आंदोलन की आड़ में देश की विकासशील परियोजनाओं में रूकावटें पैदा करते हैं। ये हम सब लोगों के बीच में रहते हैं हमको इन्हें समझना होगा और मुंह तोड़ जवाब देने का समय आ गया है। यह भी जानना होगा कि कौन लोग इन्हें सर्मथन करते हैं।
गृह मंत्रालय ने पिछले चार सालों में 13000 से अधिक गैर सरकारी संगठनों (NGO) के लाइसेंस रद्द कर दिये है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विदेशी चंदे में करीब 40% की कमी आती है।
कई संगठनों ने इस सरकारी कार्यवाही का विरोध भी किया और कहा कि सरकार गलत कर रही है। फोर्ड फाउंडेशन,अमेनैस्टी इंटरनैशनल पर भी आच पड़ी है।
रिजर्व बैंक के बोर्ड के सदस्य नचिकेत मोर का भी सरकार ने कार्यकाल घटा दिया था। इसका अभियान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने चलाया था।
25.कथित बुद्धिजीवियों की आड़ में छिपे शहरी नक्सली। “जब एक झूठ को आप इतनी बार बोले कि आपके आसपास के लोग उस पर विश्वास करने लगे तो थोड़े दिनों बाद ऐसा समय आता है कि आप खुद उस झूठ पर विश्वास करने लगते हैं”। देशभर के कम्युनिस्ट लेखक और कथित विचारक देश तोड़ने के लिए तमाम तरह के जतन करने वालों के नाम के आगे इतनी बार सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, इतिहासकार, बुद्धिजीवी, जनवादी, प्रगतिशील जैसे विशेषण लगा देते हैं कि जब आप ऐसे कथित बुद्धिजीवियों से नक्सलियों के संबंध पर बात करें तो आम आदमी को यह स्वीकार करने में ही महीनों लग जाते हैं कि चेहरे पर मुखौटा लगाकर जो महिला भूख गरीबी और शोषण पर भाव विभोर करने वाला वक्तव्य देकर गई है, वहीं महिला सांप्रदायिकता के नाम पर मारे गए लोगों की लाशों पर इकट्ठा किए पैसे से अपने पति के साथ एक बेहद महंगे होटल में बैठकर महंगी शराब और महंगा खाना खाती है।
26.इसी से जुड़ा एक नाम कामरेड मालिनी सुब्रमणियम का लिया जा सकता है। कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में उनकी गाड़ी का शीशा स्थानीय वनवासी समाज ने आक्रोशित होकर तोड़ दिया था। उन्हें मालिनी को लेकर संदेह था कि वह जगदलपुर में नक्सलियों के लिए काम करने आई हैं। इसलिए वनवासी समाज के लोग नहीं चाहते थे कि वह बस्तर में रुकें। इस खबर को देशभर के नक्सल समर्थक पत्रकारों द्वारा इस तरह प्रचारित किया गया मानों मालिनी की कार का शीशा न टूटा हो बल्कि पत्रकारिता पर हमला हुआ हो। जबकि इन्हीं कथित पत्रकारों द्वारा दूरदर्शन के कैमरामैन अच्युतानंद साहू की निर्मम हत्या पर एक शब्द नहीं बोला गया।
27.नक्सलियों द्वारा कथित तौर पर जारी किए गए स्पष्टीकरण में यह साफ झूठ लिखा गया कि वह मीडिया की उपस्थिति से परिचित नहीं थे। नक्सल समर्थक कथित पत्रकार राहुल पंडिता ने नक्सलियों के कथित पत्र के हवाले से पत्रकारों को जरूर सलाह दी कि वह पुलिस के साथ बस्तर में यात्रा ना किया करें लेकिन पंडिता ने साहू की नृशंस हत्या पर दो शब्द की संवेदना व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं समझा।
28.यूं पत्रकारों की हत्या नक्सलियों ने पहली बार नहीं की इससे पहले 2013 में नक्सलियों ने स्थानीय हिंदी दैनिक के संवाददाता नेमीचंद जैन की फरवरी में सुकमा जिले के तोंगपाल में हत्या की थी, जबकि हिंदी के एक दूसरे पत्रकार साईं रेड्डी की दिसंबर में बीजापुर जिले के बसगुडा में हत्या कर दी थी। इन दोनों पर सीपीआई (माओवादी) ने मुखबिरी का आरोप लगाया था।
29. यह एक ऐसा आरोप है जो सीपीआई (माओवादी) द्वारा हर उस हत्या के बाद लगाया जाता है जब वह किसी निर्दोष नागरिक की हत्या करते हैं या जन अदालत के नाम से मशहूर अपनी संवैधानिक अदालत में मुकदमा चलाते हैं। नक्सलियों द्वारा की गई हत्याओं का उजला पक्ष रखने की जिम्मेदारी शहरी नक्सलियों की जिम्मे में होती है वह समाज के सामने नक्सलियों की रॉबिनहुड वाली छवि गढ़ते हैं और उनके द्वारा की गई हत्याओं को सही ठहराते हैं जबकि हकीकत यह है कि नक्सलियों को दीन ईमान नहीं होता।
इसका उदाहरण है कि नक्सली हत्यारे गणेश उइके ने दूरदर्शन के पत्रकार की हत्या से 3 दिन पहले ही बयान जारी कर कहा था की मीडिया के लोग बेखौफ बस्तर में घूम सकते हैं और रिपोर्टिंग कर सकते हैं पत्रकारों को सुरक्षा का भरोसा देने वाले नक्सलियों का दावा कितना खोखला है इससे स्पष्ट साबित होता है कि इनके अलावा और भी कई उदाहरण हैं जब नक्सलियों ने पत्रकारों के मन में भय पैदा करने का काम किया है।
30.हमारे बीच बहुत से लोग हैं जो छद्म वेश से बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखक का बाना ओढ़कर नक्सलियों के लिए काम करते हैं। ऐसे ही कुछ लोगों का कच्चा चिट्ठा दिया गया है जिस पर नक्सलियों के संबंध रखने के आरोप लगे हैं।
सुधा भारद्वाज आईआईटी कानपुर की छात्रा रही हैं और कानून की पढ़ाई की है यह नक्सलियों को कानूनी चंगुल से बचाने में सहायता करती हैं।
वरनॉन गोंजालविस (60) अर्थशास्त्र का प्रोफेसर है जिसके खिलाफ महाराष्ट्र पुलिस ने 17 मामले दर्ज किए हैं। आर्म्स एक्ट में नागपुर न्यायालय ने उन्हें सजा सुनाई थी।
अरुण फरेरा पेशे से वकील है इस पर भी 2007 में महाराष्ट्र पुलिस ने 10 मामले दर्ज किए फरेरा के लिए कहा जाता है कि यह नक्सलियों की केंद्रीय समिति स्तर का कार्यकर्ता है।
पी. वरावर राव तेलुगु का नक्सली कवि माना जाता है अपने भाषणों के माध्यम से वह माओवादियों को न केवल संबल देता है बल्कि सहानुभूति दिखाता है हाल ही में इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने में गिरफ्तार किया गया।
शोमा सेन नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ाती है नक्सलियों के साथ संबंध रखने के आरोप के बाद से जांच एजेंसियों की नजर में आई।
नक्सलियों के गढ़ कहे जाने वाले गढ़चिरौली से महेश राउत काम करता था। पिछले दिनों उसका नागपुर आना हुआ तब नागपुर में पुणे पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया। बताया जाता है कि राउत नक्सलियों की खबर शहरों में उनके शुभचिंतकों तक और वहां की जानकारी अंदर जंगल तक पहुंचा में काम करता था।
एक नाम नहीं है ऐसे तमाम विषैले सांप हैं जो देश को अंदर से खोखला करने का काम कर रहे हैं गौतम नवलखा, मंजू, रोना विल्सल, सुधीर धवले, क्रांति तेलुका, दीपक तेलकुम्हडे़, एंजिला तेलकुम्ज्ञहड़े।
31.आज ISIS, तालीबान और तीसरा सबसे बड़ा खतरा शहरी नक्सलवाद है। यह आज देश में बहुत विस्तृत फैले हुए हैं। नेपाल से आंध्र प्रदेश तक नक्सल बेल्ट है। इसमें 203 जिले, 23 राज्य व कुल देश का 40% भौगोलिक भाग नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। ₹11000 करोड़ इन पर खर्च होता है और यह लोग कौन होते हैं कहां से पैसे लेते हैं यह लोग हमारे बीच में रहते हैं जैसे सिविल सोसायटी, सेकुलर, बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर यह लोग इन्हें धन से सपोर्ट करते हैं दोनों का उद्देश्य यही है एक शहरों में रहकर शहरी नक्सलवाद को फैलाएगा और दूसरा जंगलों में रहकर बंदूक की नोक पर नक्सलवाद लाएगा।
32.देश में नक्सल प्रभावित क्षेत्र 40% है तथा कश्मीर का क्षेत्रफल का मात्र 4% है फिर भी इस देश की मीडिया हमेशा कश्मीर को ही दिखाती है उसमें दिखाती है कि सेना ने कितना अत्याचार कर रखा है आज तक इस मीडिया ने जिससे 40% हमारे देश की भौगोलिक इकाई प्रभावित है उसको मीडिया कभी तवज्जो नहीं देती। उसे कभी भी लोगों को ना दिखाती ना बताती।
33.करगिल में इतने सैनिक शहीद नहीं हुए जितने नक्सल लोगों से लड़ते हुए शहीद हो गए हैं। कश्मीर में इतने सिविलियन नहीं मरे, जितने सिविलियन लोगों को नक्सलियों ने मारा है हिंदुस्तान के मीडिया में नक्सलिज्म पर कोई खबर नहीं आती कोई पत्रकार इस को दिखाना नहीं चाहता क्यों? हाल ही में छत्तीसगढ़ में दूरदर्शन के कैमरामैन अच्युतानंद साहू को नक्सलियों ने मार दिया था। वह कैमरामैन निर्भीक होकर कैमरा चालू नहीं रखता तो शायद इस देश का मानस उससे भी वंचित रह जाता।
2001 से अब तक नक्सलियों द्वारा 5969 आम नागरिकों की हत्या की गई है।
 वहीं 2147 सुरक्षाकर्मियों नक्सलियों के शिकार हुए।
 इसके अलावा इन्होंने अर्धसैनिक बलों और पुलिस से 3567 हथियार छीने हैं।
34.जिस देश ने राजनीति के इतने बड़े-बड़े सिद्धांत चाणक्य, कृष्ण ने दिए हो जिनके सिद्धांत आज भी अटल और अमर हैं। उस देश में माओ के समर्थक अभी तक क्या कर रहे हैं।
35.बारहवीं कक्षा के बाद बच्चा युवावस्था में प्रवेश करता है व नए परिवेश में ढलने की कोशिश करता है। जब बच्चा कॉलेज जाता है। तो उसके मां-बाप थोड़ी ना उसे बोलते हैं, या सिखाते हैं। कि कॉलेज में जाकर भारत विरोधी नारे लगाना या फिर जेएनयू में जाकर आतंकियों की बरसी मनाना। उसके मां-बाप थोड़ी ना सिखाकर भेजते हैं। बच्चे जेएनयू या बड़े-बड़े कॉलेज में जाकर ही सीखते है। जैसे ISIS वाले मदरसों में 8 साल के बच्चों का brainwash करके सुसाइड बौम्बर बना देते हैं। तथा इस देश में रहकर जुवेनाइल कानून का हवाला देकर वह बच जाते हैं ऐसे बच्चों पर जुवेनाइल कानून से बाहर रखकर कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि 16 साल की उम्र तक तो बच्चा आतंकवादी बन जाएगा।
36.इसी तरह हमारे विश्वविद्यालयों में लड़के-लड़कियों को बौद्धिक आतंकवादी बना देते हैं। क्योंकि वहां से निकलने के बाद यह देश में ऐसा माहौल बनाए, जहां भी वह काम करें या जहां पर भी रह रहे हो ऐसा माहौल बनाएं की देश में अराजकता फैल रही है और देश डूबा जा रहा है देश खतरे में है इसलिए नक्सलवाद ही सही सहारा है।
37.यह कैसे करते इनकी पूरी स्टेटसजी है कि लोगों को कैसे अलग करना है।
38.लड़के-लड़कियों को अलग करो। हिंदुस्तान में महिलाओं को शक्ति के रूप में देखते थे ये कब से शुरू हुआ 70 के दशक तक इंदिरा को दुर्गा के रूप में बोलते थे। Co-incident है कि भारत के टीवी सीरियल्स में तब से महिलाओं को अबला नारी के रूप दिखाया जाने लगा जबसे सोनिया गांधी ने सत्ता संभाली थी।
39.अब समाज का नेरिटव क्या बन गया की जो भी महिलाओं को अबला नारी के रूप में देखते हैं। उनको प्रोत्साहन मिलने लगा। फिर  इस लड़ाई ने या बहस में एक नया मोड़ ले लिया। इससे आशय यह निकल कर आया की यह तो होते ही ऐसे हैं और यह तो इसी लायक है। और महिला पुरुषों का, पुरुष महिलाओं का विरोध करने लगे। और परिणाम यह निकला कि आज जो तलाक, धारा 377, धारा 497 इसी का परिणाम है।
40.दूसरी इनकी योजना है कि हिन्दुओं को आपस में बांटों- हिन्दू-मुस्लिम तो हो गये  अब हिंदुओं से दलितों को काटो अलग करो।
41.जब किसी जिले में विकास कार्य चल रहा होता है तो यह जिलाधिकारी का अपहरण कर लेते हैं और सुविधाओं को नहीं पहुंचने देते ऐसा माहौल बनाते हैं कि सरकार जिले में विकास नहीं करना चाहती और इसलिए हमने जिलाधिकारी का अपहरण कर लिया है उस वक्त शहरी नक्सली सक्रिय हो जाते हैं सीपीआई (माओवादी) के यह विचारक और समर्थक योजनाबद्ध और व्यवस्थित अफवाह फैलाना प्रारंभ करते हैं जिसके माध्यम से वे इस झूठ को रचते हैं कि नक्सली वनवासी अधिकारों के लिए जंगल में लड़ रहे हैं। वास्तव में इस तरह यह लोग जंगलों में सक्रिय अपने साथियों की रॉबिनहुड जैसी छवि बनाने में कामयाब रहते हैं।
42.नक्सलबाड़ी आंदोलन कोलकाता में चला था बंदूक की नोक पर जमींदारों से गरीबों के लिए जमीनें छीनीं जा रही थी। उस समय बंगाल में नक्सल की शुरुआत थी। उसी समय विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन में पैदल चल कर अमीरों से जमीन दान में लेकर महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश में 5 लाख एकड़ जमीन गरीबों में बांटे दी थी। यह दो मॉडल एक दान का, दूसरा मॉडल बंदूक चलाने वालों का था। ये भारत की पहचान का विरोध था और नया तरीका निकाला किसी काम को कराने का।
43.विनोबा भावे ने जिस काम को अनुरोध से करवाया उसी काम को नक्सलियों ने बंदूक से कराया। विनोदा भावे का नाम आज तक किसी नेता ने नहीं लिया किताबों में नहीं पढ़ाया जाता हमें तो बस अकबर, औरंगजेब महान था। यह पढ़ाया यही तो बौद्धिक आतंकवाद है।
44.अब इनसे निजात कैसे पाएं। भारत की तीसरी सबसे बड़ी संयुक्त राष्ट्र शांति सेना है। चीन, अमेरिका, रूस, यूरोप आज भारत का लोहा मानते हैं। फिर हम इन चंद नक्सलियों से क्यों नहीं लड़ पा रहे हैं, क्यों इसको हम खत्म नहीं कर पा रहे, क्यों यह नक्सली हमारे लिए इतना बड़ा खतरा हैं। क्या यहां पर सेना नहीं जा सकती या हेलीकॉप्टर नहीं जा सकता सबसे बड़ी फोर्स है वायु सेना है जल सेना है नई-नई तकनीक है फिर भी क्यों?
45.आज हमारे पास इतनी टेक्नोलॉजी है की घर में बच्चे स्विमिंग पूल में स्विमिंग कर रहे हैं या नहीं यह तक हम देख सकते हैं। हमने अमेरिकी सेटेलाइटों को काबू में कर के परमाणु परीक्षण कर लिया था। तो क्या हम आज इन नक्सलियों को नहीं देख सकते क्या?
46.क्यों विलपावर नहीं है, कहां संकल्प कमजोर पड़ गये हैं, इसलिए नहीं है क्योंकि जिसके हाथ में इसको खत्म करने की जिम्मेदारी है। जिसके हाथ में इसको खत्म करने की पावर है। वह लोग इसको समर्थन करते हैं, और इसको कभी खत्म नहीं करना चाहते वह लोग कौन हैं वह है शहरी नक्सली (Urban naxals) जो प्रशासन में हैं, IAS, IPS , राजनेता, प्रोफेसर जो लोग सत्ता में बैठे हैं। जो लोग विश्वविद्यालय में बैठे हैं। यह लोग इसे खत्म नहीं करना चाहते बल्कि नक्सलवाद का समर्थन करते हैं।
47.आज किसी भी प्रांत में IAS, IPS, प्रोफेसर जो इसको खत्म करने की कोशिश करता है। उसे उठाकर तुरंत काला पानी की सजा दे दी जाती है। उसे ऐसी जगह भेज दिया जाता है, जहां उसका अधिकार क्षेत्र खत्म, उसकी ताकत को खत्म कर दिया जाता है। और इसलिए आज जरूरत है कि हम इस तंत्र में अपने आप को समाहित करें। लोगों को प्रोत्साहित करें कि वह अच्छे IAS, IPS बनकर इस तंत्र में जाकर शहरी नक्सलवाद की कमर को तोड़े। आज यदि हमारे हाथ में शक्ति होगी तो हम इस समस्या को मूल से खत्म कर सकेंगे नहीं तो यह समस्या कभी खत्म नहीं हो सकती।
48.कौन हैं शहरों में रहकर नक्सलवाद फैलाने वाले लोग जब अवार्ड वापसी की बात चल रही थी तो एक नाम था। अशोक वाजपेई लिखा जाता है महान साहित्यकार अशोक वाजपेई के आगे, परंतु दुष्यंत कुमार जवानी में इसलिए मर गए क्योंकि अशोक वाजपेई ने उन्हें सस्पेंड कर दिया था क्योंकि उन्होंने इंदिरा के खिलाफ आवाज उठाई थी। उनकी लिखी कविता “कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो” यह कविता दुष्यंत कुमार की थी जो आज भी स्कूल में या बड़े-बड़े मंचों की प्रथम पंक्तियां होती हैं।
49.आज भारत में राफेल विमान के ऊपर बहुत बहस चल रही है कि भारत सरकार राफेल विमान महंगा खरीद रही है वह उसका मूल्य सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है की मोदी सरकार देश में एक बहुत बड़ा घोटाला करने जा रही है राफेल विमान की आड़ में देश को खोखला कर रहे हैं परंतु यह राहुल गांधी का तथ्य सच से एक दम मुंह फेरने वाला है।
50.राफेल डील के बारे में देश नहीं पाकिस्तान और चीन जानना चाहता है।
अमेरिका इजराइल और सऊदी अरब दोनों को हथियार बेचता है परन्तु दोनों को मिलने वाले एक ही हथियार में दिन-रात का अंतर है। सऊदी अरब को दिए जाने वाले हथियारों की मारक क्षमता इजराइल को मिलने वाले हथियारों से कम है। रडारों की डिटेक्शन पावर भी कम है।
रूस ने सीरिया को आधुनिक और विकसित रडार तथा एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल बेचीं। इजराइल ने 2007 में "ऑपरेशन ओरचर्ड" के तहत सीरिया के गुप्त निर्माणाधीन परमाणु ठिकानों पर हमला करके उनको तबाह कर दिया। उस समय ना तो ये रडार इसरायली विमानों को डिटेक्ट कर पाए और ना ही कोई एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल किसी विमान को गिरा पायी। असल में रूस ने सीरिया को जो राडार और मिसाइल दिए थे उनमें एक कोड बेस्ड हैक सिस्टम था। इजराइल ने रूस से वो हैक कोड हांसिल कर लिए और सीरिया के मिसाइल और रडारों को रि-प्रोग्राम कर दिया।
51.जो अस्त्र-शस्त्र, सैन्य उपकरण आदि विदेशों में बेचे जाते हैं वो अधिकतर मामलों में कस्टमाइज्ड होते हैं। इस कस्टमाईजेशन के पीछे कई घटक काम करते हैं जैसे
ग्राहक की मांग और जरूरत के अनुसार।
 ग्राहक को अलग-अलग तकनीकों की कीमत बताई जाती है फिर ग्राहक जितनी कीमत देगा उतनी तकनीकी सुविधाएं और विशेषताएं ग्राहक ले पायेगा।
रक्षा सौदों में कोई भी देश अपनी सर्वश्रेष्ठ तकनीक दूसरे देशों को नहीं देता है। ग्राहक देश के साथ कैसे रिश्ते हैं और भविष्य में क्या संभावनाएं है आदि के हिसाब से ही तकनीक दी जाती है।
ऐसी स्थिति में भारत को फ़्रांस से कांग्रेस काल में क्या मिल रहा था और अब क्या मिल रहा है उसमें जमीन आसमान का अंतर हो सकता है। कुछ मोटी-मोटी चीजें तो सबके सामने हैं परन्तु उसके अलावा बहुत कुछ ऐसा है जो बताया नहीं जा सकता। इसलिए कांग्रेस की राफेल डील को सार्वजानिक करने की मांग गुमराह करने वाली ही नहीं देशद्रोही भी है।
बाकी मोदी सरकार की डील कांग्रेस की पुरानी डील से 750 मिलियन यूरो (लगभग 6 हजार करोड़ रूपये) सस्ती ही पड़ेगी।
52.आज हमारे देश में हर रोज यह देखने को मिलता है की कुछ लोग हैं जो हमारे साहित्य का विरोध करते हैं धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है इसलिए आप हिंदू धर्म का किसी भी विद्यालय में सरकारी दफ्तर में प्रचार या उसको अनुसरण नहीं कर सकते।
आज चाहे केंद्रीय विद्यालय में उनकी प्रार्थना का विरोध हो या बिहार के एक मदरसे में एक मुस्लिम शिक्षक के द्वारा वंदे मातरम ना गाने का तथ्य हो यही है शहरी नक्सलवाद। जिसे आज हर हाल में खत्म करना होगा व इसके खिलाफ एकजुट होना पड़ेगा।
आज देश में हम बच्चों को गीता, रामायण का पाठ नहीं पढ़ सकते, क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है क्या इसका अर्थ यह है की यदि हम धर्मनिरपेक्ष हो गए तो हम अपनी संस्कृति को नहीं पढ़ा सकते हम सिर्फ यहां पर विदेशी संस्कृति को पढ़ाएंगे क्योंकि वह धर्मनिरपेक्ष नहीं है।
आज हमारे बाजार विदेशी साहित्य से अटे पड़े हैं, आज विद्यालय के पाठ्यक्रमों में सिर्फ अंग्रेजी साहित्य ही पढ़ाया जाता है अंग्रेजी में भी अंग्रेजों का ही साहित्य पढ़ाते हैं उनको रूपांतरित नहीं करते अंग्रेजी ही पढा़नी है तो महाराणा प्रताप के बारे में अंग्रेजी में पढ़ाओं, शिवाजी के बारे में हमने पढ़ा ही नहीं क्योंकि वह तो धर्मनिरपेक्ष हो जाएगा।
53.आज एक नया चुनावी विकल्प भी हमारे सामने आया है नोटा (NOTA) इसका अर्थ है कि यदि आपको कोई उम्मीदवार पसंद नहीं है तो आप नोटा को वोट दे सकते हैं। यह लोकतंत्र को कमजोर करता है और देश का पैसा भी खर्च करता है शहरी नक्सलवादी भी देश में नोटा का समर्थन करते हैं। जिससे देश में कोई स्थिर सरकार ना बने और आज देश में नोटा का प्रतिशत काफी बढ़ गया है।
54.चुनावों में हमें किसी न किसी उम्मीदवार को तो वोट देना ही चाहिए। परंतु नोटा सही विकल्प नहीं है। यदि कंस व रावण में किसी एक का चुनाव करना हो तो हमें रावण को चुनना चाहिए क्योंकि वह विद्वान था।
55.यदि आज हमारे पास इन से लड़ने का सबसे बड़ा कोई हथियार है, ताकत है, इन को मारने की तो वह है इनके खिलाफ लिखना और उसे प्रकाशित करना उनके शब्दावली के विरोध में अपना जवाब देना ऐसे तथ्य पेश करना जिससे यह निष्तनाभूत हो जाए।
56.जिस प्रकार आतंकवाद को जैसे बंदूकों से मारा जाता है उसी प्रकार इन्हें लॉजिक, नॉलेज, फैक्ट से मारना पड़ेगा। तीसरा कोई एजेंडा नहीं है केवल भारत को मजबूत बनाना है।
57.हमारे पास नक्सल्स से लड़ने के लिए बंदूक नहीं है पर हम इन शहरी नक्लियों से तो लड़ सकते हैं। बिना शहरी नक्सलवाद को खत्म करें हम जंगल के नक्सलवादियों को खत्म नहीं कर सकते।
58.परंतु जैसे जैसे शहरी नक्सलियों की साजिशें उजागर हो रही हैं, वैसे-वैसे इन पर प्रशासन का न केवल शिकंजा कसा है बल्कि हाल ही में कुछ गिरफ्तारियां भी हुई है इन गिरफ्तारियों ने इन लोगों के चेहरे को बेनकाब किया है। 47 लाख के इनामी नक्सली पहाड़ सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया उसी ने प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश में पकड़ी गई सुधा भारद्वाज की पहचान की। पहाड़ सिंह ने नक्सलियों के शहरी नेटवर्क में सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, वरावर राव, गौतम नवलखा के शामिल होने की बात मानी।
59.राज्य सभा टीवी के पत्रकार नव विक्रम सिंह ने बस्तर से लौट कर लिखा ”संवेदनशील भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट के एक ग्रामीण मतदान केंद्र पर बताया हमारे अंदाज से यहां एकदम अलग रिकॉर्ड भीड़ थी हमारे शहरों में तमाम सहूलियत के बावजूद जनता सरकारों और देश को कोसती है और वोट देने नहीं जाती, लेकिन नक्सलियों से जान से मारने की धमकी मिलने के बावजूद बहुसंख्यक आबादी पोलिंग बूथ पर नजर आई मैंने देश के अलग-अलग क्षेत्रों के चुनाव को कवर किया है लेकिन बस्तर के लोगों जैसी जिंदादिली नहीं देखी।“
60.नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ चुनाव को असफल बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी थी। वनवासियों को धमकी दी गई थी कि उनकी जिस उंगली पर मतदान के बाद स्याही का निशान दिखेगा, उस हाथ को काट दिया जाएगा
वनवासियों को दहशत में डालने के लिए मतदान शुरू होने से महज कुछ घंटों पहले नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा में एक के बाद एक छह आईडी धमाके किए जिसमें बीएसएफ का एक जवान शहीद हो गया। यह बस्तर के वनवासियों की लोकतंत्र में आस्था ही थी कि वह इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच मतदान केंद्र तक निकल कर आए और मतदान को सफल बनाया।
 पिछले विधानसभा चुनाव में यहां 65 फ़ीसदी मतदान हुआ था इस बार 71 फ़ीसदी का रिकॉर्ड मतदान हुआ। मतलब लोकतंत्र जीत गया और एक बार फिर नक्सली हत्यारे छत्तीसगढ़ में हार गए यह वोट प्रतिशत दिल्ली और मुंबई में डाले जाने वाले मतों से कहीं अधिक है।
वहीं नारायणपुर में किसकोड़ो दलम की कमांडर रही राजबत्ती ने अपने पति मेनूराम के साथ मतदान किया उन्होंने 2014 में आत्मसमर्पण किया था दोनों को अफसोस है कि वे कभी नक्सली थे।
इतना ही नहीं नक्सल प्रभावित सुकमा जिले के गोरगुंडा में 103 वर्षीय वनवासी महिला सोनी बाई मतदान के लिए आईं और लोकतंत्र विरोधी हत्यारे नक्सलियों को ठेंगा दिखाया।
61.इस लेख के माध्यम से नक्सलियों के साथ-साथ उनके शहरी रिश्तो को समझने की जरूरत है। जो शहरों में अपने काम को अंजाम दे रहे हैं उनके लिए कारतूस और हथियार पहुंचाने वाले लोग नियुक्त हैं। विडंबना तो यह है कि यह हथियार पहुंचाने वाले सपोले समाज में ठेकेदार बन कर सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर रहे हैं।
2018 में महाराष्ट्र पुलिस के खास दस्ते सी-60 को नक्सलियों के संबंध में गुप्त सूचना मिली फिर महाराष्ट्र पुलिस ने सीआरपीएफ के साथ मिलकर 3 दिन में 36 नक्सली को ढेर कर दिया।
62.शहरी नक्सलियों समेत तमाम नक्सली नेताओं की कोशिश यही है कि शहरी नक्सल के सच को लोगों के सामने ना आने दिया जाए। जंगल में नक्सलियों द्वारा की जाने वाली हत्या, अपहरण, लूट, बलात्कार की वारदातों को महानगरों में क्रांति साबित करने वालों के चेहरे उजागर ना होने पाएं।
63.अब लोग इन चेहरों को पहचान गए हैं साथ ही जल्दी ही भारत का समाज शहरी नक्सलियों के चेहरे पर पढ़े मुखौटे को उखाड़कर कर उन्हें बेनकाब कर देगा। अब देश का मानस समझ गया है कि अब राष्ट्रहित में खड़े होने का समय आ गया है।
64.माओवादी नक्सलवादी घायल कर डाली आजादी पूरा भारत आग हुआ है जलियांवाला बाग हुआ है। आज देश में नक्सलवाद चरम पर है।

खेल कबड्डी कहकर
पाले में न घुस पाये दुश्मन
प्रतिद्वंदी से ताल ठोक कर
कह दो भाग जाओ दुश्मन आज नहीं तो
कल के भारत के हम ही पहरेदार है।
अभिमन्यु के रथ का पहिया चक्रव्यूह की मार हैं।


धन्यवाद

रवि
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