Thursday 24 January 2019

राष्ट्र पुनर्निर्माण में भारत की अवधारणा

विषय-राष्ट्र पुनः निर्माण की हमारी अवधारणा
1. ‘राष्ट्र की हमारी अवधारणा’ क्या है? यह समझना सबसे पहला काम है। पश्चिम के अनुसार समझेंगे तो ज्यादा भ्रम होता है। इसलिए हम अपनी और देखकर अगर विचार करें तो स्पष्टता आती है। ‘राष्ट्र’ शब्द का प्रयोग अन्य किसी भाषा में नहीं है, हमारी भाषा में ही है। अंग्रेजी भाषा में ‘राष्ट्र' शब्द नहीं है। इसलिए अंग्रेजी का शब्द प्रयोग करके अगर हम समझेंगे, तो भ्रम ज्यादा होगा और फिर नेशनल, नेशनलिटी,नेशलिज़्म वगैरह-वगैरह शब्द प्रयोग करने पड़ते हैं। इसलिए हमने अपने शब्दों का प्रयोग करके ही विषय समझने का प्रयत्न करना चाहिए। ‘राष्ट्र' का मतलब लोग होते हैं
2.अपने देश में जो मूलभूत वैचारिक संघर्ष चल रहा है वह भारत की अवधारणा के विषय में ही है एक अवधारणा जिसका नेतृत्व वामपंथी विचार के लोग करते हैं और दूसरी और जो राष्ट्रीय दृष्टिकोण के विचारक हैं जो विचारक वामपंथी विचार के नहीं हैं उन सभी को इन वामपंथियों ने दक्षिणपंथी का नाम करार दिया है यह सभी दक्षिणपंथी एक विचार के हैं ऐसा भी नहीं है केवल वह वामपंथी के साथ सहमत हैं यही बात उन्हें समान है असली संघर्ष इन दो अवधारणाओं के बीच है यह सभी वामपंथी विचार के लोग भारत विरोधी हैं ऐसा भी नहीं कह सकते केवल उनकी भारत की अवधारणा ही भिन्न है There is basic difference about idea of Bharat. इसलिए यह वैचारिक संघर्ष भारत की विभिन्न अवधारणाओं के बीच का संघर्ष है भारत की एक अवधारणा व है जिसका गुरुत्वाकर्षण केंद्र (Centre of gravity) भारत में नहीं है भारत के बाहर है दूसरी अवधारणा का केंद्र भारत की मिट्टी में है।
3. अर्थ,काम,कला आदि को प्राप्त करते हुए अंततः तो मोक्ष की ओर ही जाना है यह भारत का चिंतन है पर भारत में इसी भारतीय चिंतन का विरोध हो रहा है, होता आया है भारत में ही भारत को नकारा जा रहा है और यह नकारना याने प्रगतिशील होना है उदार होना है बुद्धि वादी होना है ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास होता रहा है पर इसी कारण भारत का पुरुषार्थ प्रकट नहीं हो रहा है यह एक षड्यंत्र है इसके पीछे एक निश्चित योजना है इसे पहचानना होगा और इसे निष्प्रभ करना होगा।
4. भारत स्वतंत्र होने के बाद भी भारत के इस मूलभूत चिंतन की अपेक्षा और मजाक ही किया गया 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम 16 मई को आए 18 मई के संडे गार्डियन के संपादकीय के पहले तीन वाक्य बहुत महत्वपूर्ण हैं संडे गार्डियन ने लिखा है today 8 may 2014 may well go down in history As the day when Britain finally left India Narendra Modi victory in the elections marks the end of a long era in which the structures of power did not differ greatly from those through which Britain rule the subcontinent India under the Congress party was in many ways a continuous one of the British raj by other mean.
5.भारत को भारत बनाना है यह गुरुदेव रविंद्रनाथ कहते हैं और भारत में 'भारत' को ही नकारा जा रहा है।और भारत में बाहर की अवधारणाएं थोपने का प्रयास चल रहा है। भारत क्या है? भारत की भूमिका क्या है। इस बारे में रविंद्रनाथ लिखते हैं- एक बार तो तू उसे भारत मां कह कर पुकार सारी शक्ति तुझ में आएंगे परंतु आज इसी भारत में भारत माता की जय का विरोध हो रहा है इसलिए भारत को समझना आवश्यक है।
6.  अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद हमारे लोगों के द्वारा करता नैरेटिव लाने का प्रयास हमारे ही लोगों द्वारा चल रहा है भारत में भारत की अभारतीय अवधारणा थोपने का लगातार प्रयास चल रहा है। अर्थात अब इन शक्तियों को भारत के लोग नकार रहे हैं और यह शक्तियां धीरे धीरे हाशिए पर जा रही हैं और जो भारत का ही मूल विचार है, जो समाज में मन में गहराई तक बैठा हुआ है, वह अब प्रकट और मुखर हो रहा है।
6. एक ऐसा वातावरण निर्माण करने का प्रयास किया जा रहा है कि जो भारत का,भारतीयता का विरोध करेगा वह प्रोग्रेसिव है लिबरल है बड़ा बुद्धिजीवी है और जो भारत की बात करेगा वह दकियानूसी, पिछड़ा, एंटीलिबरल असहिष्णु आदि आदि हैं। ऐसी शब्दावली उन्होंने तैयार की है उस शब्दावली को समझना होगा, इन शब्दों के पीछे क्या भाव है उसे समझना होगा। और लिखते समय हमें अपनी शब्दावली को चुनना होगा तैयार करना होगा प्रचलित करना होगा जैसे ‘राइट-लेफ्ट’ शब्द शब्दावली को मैं नहीं मानता। अपने आप को लेफ्ट या वामपंथी भले ही कहें हम राइट या दक्षिणपंथी नहीं हैं हम राष्ट्रीय हैं। ‘लेफ्ट-नानलेफ्ट’ या ‘वामपंथी-रामबन’ ऐसी भी कह सकते हैं दक्षिणपंथी नहीं हमारे लेखन में हम राइट या दक्षिणपंथी शब्द का प्रयोग ना करें उसके स्थान पर हम राष्ट्रीय के हैं क्या हम आग्रह पूर्वक यह कर सकते हैं?
7. पहले खुद को बदलना खुद को मैकाले मुक्त करना, खुद को स्वतंत्र करना,अपनी संस्था को स्वतंत्र करना, परिवार को स्वतंत्र करना, समाज को स्वतंत्र करना। हम सुधरेंगे जग सुधरेगा। फिर ये Happy New year की प्रथा बदल कर चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि पर जाएगी।
8.  राष्ट्र का निर्माण हमें कैसे करना है हमें राष्ट्र का निर्माण इस प्रकार करना है जिससे समाज में स्थाई परिवर्तन आए।राष्ट्र का निर्माण तो कर्त्तव्यों से होता है अधिकारों से तो लड़ाई होती है अधिकार तो विखंडन करते हैं, जोड़ने का काम तो कर्तव्य करते हैं। सत्ता परिवर्तन तो होता है पर व्यवस्था परिवर्तन क्यों नहीं होता इसके पीछे क्या है? इसको समझना चाहिए।
9. हम इसे राष्ट्र कहते हैं। राष्ट्र में तो लोग होते हैं। डॉक्टर साहब ने यह कभी नहीं कहा कि- ‘हमें हिंदू राष्ट्र बनाना है उन्होंने कहा है कि हम हिंदू राष्ट्र है हमारा मानते हैं कि हिंदू चेतना चेतन-अवचेतन मन से हमारे अंदर है सामान्य जनों में है इसे फिर से जागृति करना है और इसलिए पाठ्यक्रम में गांधी है और विवेकानंद जी नहीं फिर भी आज की युवा पीढ़ी विवेकानंद जी को ज्यादा पड़ती है। अब मूल प्रश्न है कि यहां की बनी व्यवस्था स्टेट सिस्टम है वह यहां के अनुकूल है यह governing system हमारे राष्ट्र के साथ In tune है क्या? इसलिए सत्ता में बैठे लोग तो बदल जाते हैं पर व्यवस्था नहीं बदलती।
10. 1909 मैं हिंदू स्वराज्य में evils of Western civilization नाम से महात्मा गांधी का 1 अध्याय है it is a classic exposition on the danger of colonial state. वह क्या कहते हैं इसके बारे में उनका मानना है कि the essential nature of this state is divisible,subpressive and violent. उनकी टर्मिनोलॉजी हमें समझनी चाहिए और उसके आधार पर स्ट्रक्चर कैसे क्रिएट हुए उसको समझना चाहिए। यह इंग्लिश है या मातृभाषा है यह उनकी स्टेटजी है। हमको इसमें नहीं पड़ना मूल मुद्दा यह है भाषा कोई भी हो, तंत्र कोई भी हो उसके पीछे की दृष्टि भारतीय है या नहीं यह हमें देखना है।
11. संविधान बनने के बाद देश में केंद्र स्तर पर जोर दिया गया क्योंकि देश की एकता, अखंडता को बनाए रखने के लिए यह जरूरी था इस पर बाबा साहब की एक बहुत अच्छी टिप्पणी है “ मुझे स्वतंत्रता बनी रहेगी या नहीं इसकी चिंता है क्योंकि इतिहास गवाह है हमें बताता है कि दूसरों ने हम पर राज नहीं किया हमें से कुछ गद्दार उनको जाकर मिले इसलिए वह हम पर राज कर सके”। वैसा फिर से ना हो केंद्र की सत्ता को हमें बनाए रखना होगा।
12. हमें भारत में भारत की दृष्टि लानी चाहिए। मेरा मानना है कि जो संविधान में भारतीयता लाने का काम किसी ने किया है तो वह है राज्य के नीति निर्देशक तत्व मेरा साफ मानना है इस व्यवस्था को पूरी तरह से नकारने वाले हम अनार्किस्ट तो हम हो नहीं सकते। इसलिए इस व्यवस्था के अंदर और बाहर दोनों तरह से इस व्यवस्था को भारत के अनुकूल बनाने के लिए क्या कर सकते हैं यह जरूर हम हो सकते हैं यह करने के लिए निरंतर प्रयास करना पड़ेगा। यह डिसकोर्स कि आप चर्चा किस दिशा में बढ़ाते हैं उससे संभव होगा।
13. 2003 में यूनाइटेड नेशन की एक रिपोर्ट आई थी उस रिपोर्ट का विषय था न्याय और संतुष्टि मतलब कितने लोग न्याय मिलने से संतुष्ट हैं तो उसमें सामने आया कि भारत में कुल 87 प्रतिशत लोगों का समाधान नहीं हुआ मतलब दोनों पक्ष उसे खुश नहीं है उसमें 10 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जिनमें सिर्फ एक पक्ष ही संतुष्ट है। इसके विपरीत “लोक” पूर्वोत्तर में है छत्तीसगढ़ में है इनके यहां भी न्यायदान की अपनी प्रक्रिया है वहां सामान्यता कोर्ट में नहीं जाते तो उनको न्याय कौन देता है तो उनसे भी यह प्रश्न पूछा गया कि आप अपने न्याय से आप संतुष्ट होते हैं क्या? तो उनका उत्तर था कि हमारे पंचों ने न्याय दिया है ना! तो हम संतुष्ट हैं। किसके पक्ष में न्याय हुआ यह विषय नहीं है परंतु दोनों पक्ष से संतुष्ट हैं इसके पीछे की धारणा है कि यह लोग अपने पंजों में विश्वास रखते हैं इसलिए उनसे संतुष्ट हैं यह हमारे भारत की अवधारणा और इस अवधारणा को हमें पुनः स्थापित करना है।
14. इसका आशय है कि अधिकार मांगते हैं बिना अधिकारी बने जो अंग्रेजी का राइट शब्द है उसका रूपांतरण हम करते हैं अधिकार शब्द से पर इनका दोनों का मतलब एकदम भिन्न है। अधिकार हमारी हिंदू संस्कृति में इसका अर्थ है कि यह इस योग्य बना है इसलिए हम इसे अधिकारी मानते हैं।Right राइट शब्द का मतलब यह हो ही नहीं सकता राइट्स शब्द मांगने वाला है।यह राइट शब्द तो कांट्रेक्चुअल है ।इसलिए कानून तो बनता है पर वह फॉलो नहीं होता इसका मतलब है कि वह कानून भारत के मानस के अनुसार बने ही नहीं इसलिए पहले से ही मानसिकता ऐसी रहती है कि इसे फॉलो ही नहीं करना।
15. क्या हम भारत की व्यवस्था को भारत के मानस के अनुसार बना सकते हैं। आज के मूल ढांचे को पूरी तरह से ध्वस्त करने की मानसिकता ना रखते हुए भी इसको हमारे मानस के अनुसार बना सकते हैं क्या? मेरा मानना है कि यदि इस पर थोड़ा काम हो तो हम इसे बना सकते हैं। हम यह कहना शुरू कर दें कि हमें अपने राष्ट्र को सहभागी बनाना है। इसके अनुसार हम कहे कि भारत की मानसिकता के अनुकूल यह सारी व्यवस्थाएं हो तो इसकी चर्चा क्या होगी, कि अभी तक तो हिंदू राष्ट्र बनाने की बात चल रही थी, लो अब हिंदू स्टेट भी चाहिए और हमें इस दिशा में नहीं जाना। क्योंकि स्टेट कभी भी हिंदू नहीं हो सकता और हमें कभी करना भी नहीं है। हमें क्या करना है हमें यहां की व्यवस्था हिंदू मानस के अनुकूल करनी है।इसलिए इसे सहभागी बनाना है।
16. यदि हम अपनी मासिक वेतन का दशांश यदि शिक्षा को दें तो हम शिक्षा के क्षेत्र में इतना धन एकत्र कर पाएंगे कि शासन के बस की बात भी नहीं है। यदि समाज सहभागी तो उसके पीछे हमारी मानसिकता भी पवित्र होगी, हमारा कर्तव्य होगा कि उसको हमें सुरक्षित, संरक्षित करना है। महाराष्ट्र में 2017 में जलयुक्त सिवार अभियान चलाया इसमें में ऐसा है कि जितना धन समाज एकत्र करेगा उतना ही धन सरकार देगी इससे समाज जुड़ेगा।हमारे चिंतन का मूल आधार क्या है? हमारे मूल चिंतन का मूलाआधार कभी भी यह नहीं रहा कि यह कि सरकार करेगी,राज्य करेगा। इसके लिए एक आम धारणा और लानी होगी।
             ‘केवल सत्ता से मत करना परिवर्तन की आस,
            जाग्रत जनता के केंद्रों से होगा अमर समाज।'
17. एक समय ऐसा भी आएगा कि कॉन्स्टिट्यूशनी भी हमें उन टर्मिनोलॉजी को चैलेंज करना पड़ेगा उसमें मेरे हिसाब से जो संविधान मे जो 42 वां संशोधन करा था और उसमें Fundamental duties हमारे ‘मूल कर्तव्य’ सम्मलित करे गए थे उनको न्यायिक दायरे में लाना पड़ेगा।तुमको जितना चाहिए उतना लो दूसरा के हक को मत लो दूसरों का हक छीनने का आपको कोई अधिकार नहीं है। अगर दूसरों के हक को छीना तो आपको सजा मिलेगी आपको दंडित होना ही पड़ेगा। इसलिए हमारे यहां जीवन की शैली कैसी थी? ॠषियों ने सूत्र दिया है कि सब एक ही है सबके मंगल की कामना ही ऐसी सामूहिक इच्छा है। गरीबों का भी कल्याण भी करना चाहिए इसके लिए कॉन्स्टिट्यूशली प्रिंसिपल बनाने की आवश्यकता नहीं है, पार्लिमेंट में कोई प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए “सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया”। यह प्रार्थना की। सबका कल्याण, हमारा कोई भी मत संप्रदाय हो सबकी प्रार्थना सबके कल्याण की कामना की है।
18.  हमारी राष्ट्र की अवधारणा और अन्यत्र जो देश बने हैं, उनकी अवधारणा में बहुत बड़ा अंतर है। उसकी तुलना नहीं हो सकती। इसलिए आप इतिहास में देखेंगे कि इस्लामिक या इसाई क्रिसेड जो अपने स्थान से चली उन्होंने अपने मार्ग में आने वाले सभी राज्यों पर आक्रमण किया और राजा के परास्त होते ही वहां के समाज को वे इस्लाम या ईसाइयत में कन्वर्ट कर सके। परंतु भारत में 800 वर्ष इस्लाम का और 150 वर्ष ईसाई शासकों का राज्य होने के बावजूद भारत में वे केवल 13 प्रतिशत को इस्लाम और दो प्रतिशत को ईसाइयत में कन्वर्ट कर सके। ऐसा अन्यत्र कहीं नहीं परंतु भारत में ही क्यों हुआ? कारण, यहां की सामाजिक व्यवस्था है केवल राज्य पर अवलंबित नहीं थी।
        यूनान मिस्र रोमां सब मिट गए जहां से,
      क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
19. स्वामी विवेकानंद जब धर्म संसद शिकागो में भाषण दे रहे थे तो ऐसा इतिहास में वर्णित है कि उनके भाइयों और बहनों बोलने पर ही तालियां बजी थी परंतु यह सच है कि उनसे पहले 3 लोगों ने उसी से भाइयों और बहनों बोल कर संबोधित किया था। लेकिन सिर्फ तालियां उनके लिए इसलिए बजी थी। कि विवेकानंद जी की वाणी में इतनी आत्मीयता थी और इतना अपनापन था कि लोगों को भावुक कर दिया था। यह मेरे भारत की अवधारणा थी। इसलिए विवेकानंद जी शिकागो से लौटने के बाद मिट्टी में लोटपोट हो गए थे।
20. हमारी अवधारणा में परिवर्तन लाना विद्यालयों में भी जरूरी है यदि बच्चा विद्यालय में आकर खुश है या नहीं यह हम दूर से देखकर कैसे पता लगा सकते हैं यदि बच्चा खुश होकर विद्यालय आए तथा दुखी मन से विद्यालय से जाए तो हमें उसका संकेत मिलना चाहिए कि विद्यालय में बहुत अच्छा पाठ्यक्रम है बच्चा रुचि ले रहा है पढ़ाई में। परंतु आज होता इसके एकदम विपरीत है बच्चे दुखी मन से स्कूल जाते हैं और जब विद्यालय की छुट्टी की घंटी बजती है तब उनका मन में उल्लास से भर जाता है।
21. अंत में एक कहानी के माध्यम से मैं अपने देश की आत्मीयता अवधारणा का परिचय देता हूं की एक दुकान पर एक बहुत अमीर महिला जाती है तथा साड़ी की दुकान पर जाकर बोलती है कि मुझको इस दुकान की एक सस्ती सी साड़ी ला कर दे दो क्योंकि मेरे यहां काम करने वाली की बेटी की शादी है और कुछ समय बाद उसी दुकान पर फटी हुई धोती पहनकर एक उल्लासित मन से एक बूढ़ी महिला आती है और उस दुकान में आकर बोलती है कि इस दुकान की सबसे महंगी साड़ी मुझे दे दो क्योंकि मेरी मालकिन की बेटी की शादी है। यह मेरे भारत की आत्मीयता थी। यह मेरे भारत की अवधारणा थी। इसको हम सब को पुनः निर्माण करना है इसके लिए हमें संकल्पबंध्द होना पड़ेगा। ऐसी प्रतिष्ठा का क्या करोगे जो किसी के विकास में बाधक बने।

  आओ! कोलाहल को स्वर दें।
बिखरे भावों को शब्द,
शब्द को गीत, गीत को लय दें।
आओ! कोलाहल को स्वर दें।

वर्षा के जल को प्रवाह,
प्रवाह को दिशा, नदी को भगीरथ तट दें।
आओ! कोलाहल को स्वर दें।

संशय भरे मन में विश्वास,
विश्वास को निष्ठा,  निष्ठा को संकल्पित मन दें।
आओ! कोलाहल को स्वर दें।

भटके लोगों को राह,
राह को ध्येय,  ध्येय तक बढ़ते पग दें।
आओ! कोलाहल को स्वर दें।



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